कविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन

जुर मिल के काम करके
हम नवा रसता बनाबोन |
नियाव धरम ल मानके संगी
समाज ल आघू बढ़ाबोन ||
नइ होवन देन हमन
अपन रिति रिवाज के अपमान
समय के साथ चलके संगी
बढ़ाबोन एकर मान |
सबके साथ नियाव करबो
अन्याय होवन नइ देवन
राजा रंक सब एक समान हे
कोनो के जान नइ लेवन |
सुख दुख जम्मो में सबके
काम हमन आबोन
जेकर घर काम परही
ओकर घर हमन जाबोन |
इही समाज में रहना हमला
इही समाज में जीना हे
सब ल अपन समझ के संगी
पानी पसीया पीना हे |
समाज ल आघू बढ़ाये खातिर
कुरिति ल मिटाना हे
भाई बंधु के परेम जगा के
नवा सुरिति लाना हे |
Mahendra Dewangan
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन “माटी”
(बोरसी-राजिम वाले)
गोपीबंद पारा पंडरिया (कवर्धा)
मो.नं-8602407353
Email-mahendradewanganmati@gmail.com

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2 Thoughts to “कविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन”

  1. सुनिल शर्मा "नील"

    आपके कबिता खच्चित समाज ल आघु बढ़ाय बर एक प्रेरक साबित होही…….

  2. HEMLAL SAHUI

    bahut badiya Dewagan G aage badi jarur

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